अब नहीं मिलता
वो रोटी वो अचार नहीं मिलता
माँ के हाथ के खाने का वो स्वाद नहीं मिलता
थक जाती हूँ सब कुछ सँभालते सँभालते
सुकून वाला वो इतवार नहीं मिलता
ज़िन्दगी की दौड़ में वक़्त पंख लगाकर उड़ गया
नाव बनाने के लिए वो अखबार नहीं मिलता
अब वक़्त निकल जाता है सब उन रसोई की दीवारों में
रंगों से खेलने वाला वो त्यौहार नहीं मिलता
सबकी खुशियों का ध्यान रखने लगी हूँ मै
मेरी खुशियों का ध्यान रखने वाला प्यार नहीं मिलता
बड़ी हो गयी हूँ मै हर बार बताया जाता है मुझको
क्यों मुझे वो सखी सहेलियों के साथ समय बिताने वाला वार नहीं मिलता
क्यों मुझे वो सखी सहेलियों के साथ समय बिताने वाला वार नहीं मिलता
जो मुझे बेटी समझकर बन्धनों से आजाद कर दे
अब मुझे कहीं वो संसार नहीं मिलता
बताया जाता है हर बात पर की बहु पत्नी हु मै
भाई के जैसे समझाने वाला यार नहीं मिलता
और जब सो जाती हु थककर रात को
सुबह प्यार से जगाने वाला वो परिवार नहीं मिलता
सुबह प्यार से जगाने वाला वो परिवार नहीं मिलता
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