Thursday 9 February 2017

अब नहीं मिलता


अब नहीं मिलता 

वो रोटी वो अचार नहीं मिलता 
माँ के हाथ के खाने का वो स्वाद नहीं मिलता  
थक जाती हूँ सब कुछ सँभालते सँभालते 
सुकून वाला वो इतवार नहीं मिलता 
ज़िन्दगी की दौड़ में वक़्त पंख लगाकर उड़ गया 
नाव बनाने के लिए वो अखबार नहीं मिलता 
अब वक़्त निकल जाता है सब उन रसोई की दीवारों में  
रंगों से खेलने वाला वो त्यौहार नहीं मिलता 
सबकी खुशियों का ध्यान रखने लगी हूँ मै  
मेरी खुशियों का ध्यान रखने वाला प्यार नहीं मिलता 
बड़ी हो गयी हूँ मै हर बार बताया जाता है मुझको 
क्यों मुझे वो सखी सहेलियों के साथ समय बिताने वाला वार नहीं मिलता  
जो मुझे बेटी समझकर बन्धनों से आजाद कर दे 
अब मुझे कहीं वो संसार नहीं मिलता 
बताया जाता है हर बात पर की बहु पत्नी हु मै  
भाई के जैसे समझाने वाला यार नहीं मिलता
और जब सो जाती हु थककर रात को
सुबह प्यार से जगाने वाला वो परिवार नहीं मिलता  
By Neha Sharma



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