my 12th class poem
खूबसूरती
छूकर गुजरी हवा जो मन को
लगा जैसे जान मिल गई जीवन को
बाल खुल गए तब हवा के एक झोके से
चूम लिया लटो ने गालो को धोखे से
आँखों पर जैसे ओस कोई गिरी थी
होंठो को छूकर जैसे वो भी गुजरी थी
बालों को सँभालने के लिए ऊँगली जो छु गई
मत हटाओ हमें चेहरे से ये ये लटाएं कह गई
हमें लहराने दो आज पहरे पर
मत हटाओ हमे इस फूल से नाज़ुक चेहरे से
कभी हाथों ने नहीं छुआ इन नाज़ुक गालो को
आज बिखरे रहने दो इन लहराते हुए बालो को
जब चले वो तो जमीं ये कहने लगी
की आज तो मदहोशी हम पर भी छाने लगी
कहने लगी छु लेने दो इन कोमल से पैरो को
राज़ जो दिल में दबे है कह लेने दो
फूलों ने कहा की बढ़कर हाथ आज थाम लो हमको
कोमल से इन हाथो में पनाह दे दो इनको
वो ख़ूबसूरती थाई या बिजलियों की चमकती परछाई
हर कोई तरसता है इतना हुस्न वो कहाँ से लाई
जन्नत की परी या कोई अप्सरा हो तुम
कभी मिलोगी क्या हमको ये सोचते है हम
By neha sharma
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