Thursday 11 October 2012

ख़ूबसूरती

my 12th class poem



खूबसूरती 



छूकर गुजरी हवा जो मन को 
लगा जैसे जान मिल गई जीवन को 
बाल खुल गए तब हवा के एक झोके से 
चूम लिया लटो ने गालो को धोखे से 
आँखों पर जैसे ओस कोई गिरी थी 
होंठो को छूकर जैसे वो भी गुजरी थी 
बालों को सँभालने के लिए ऊँगली जो छु गई 
मत हटाओ हमें चेहरे से ये ये लटाएं कह गई 
हमें लहराने दो आज पहरे पर 
मत हटाओ हमे इस फूल से नाज़ुक चेहरे से 
कभी हाथों ने नहीं छुआ इन नाज़ुक गालो को
आज बिखरे रहने दो इन लहराते हुए बालो को 
जब चले वो तो जमीं ये कहने लगी 
की आज तो मदहोशी हम पर भी छाने लगी 
कहने लगी छु लेने दो इन कोमल से पैरो को 
राज़ जो दिल में दबे है कह लेने दो 
फूलों ने कहा की बढ़कर हाथ आज थाम लो हमको 
कोमल से इन हाथो में पनाह दे दो इनको 
वो ख़ूबसूरती थाई या बिजलियों की चमकती परछाई 
हर कोई तरसता है इतना हुस्न वो कहाँ से लाई 
जन्नत की परी या कोई   अप्सरा हो तुम 
कभी मिलोगी क्या हमको ये सोचते है हम 

By neha sharma



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