Sunday 7 October 2012

क्यों वो


क्यों वो

वो इतना क्यों सँवरती है 
इतना कैसे निखरती है 
लगता है की जैसे वो 
परी सी मुझको लगती है 
कुछ  यु नज़रें झुकाती है 
की आँखें बात करती है 
मै जब भी करीब आता हु 
वो ऐसे सिमट जाती है 
क्यों मै उसमे डूब जाता हु 
क्यों वो इतना शरमाती  है
जैसे घटायें बादल में 
बरसती और थम सी जाती है 
 क्यों वो फूलों सी यूँ नाज़ुक है
क्यों वो काजल लगाती है 
की जैसे बिजलियाँ सैकड़ों 
मुझ पर गिर जाती है
लहराती है जब वो आँचल को 
क्यों दिल में कसक उठ जाती है 
क्यों दिल पर मेरे काबू नहीं 
क्यों हँसकर वो जाती है   
क्यों इतने बहाने बनाती है 
क्यों इस दिल को जलाती है 
मिलेगी तो  मै पूछुंगा की 
क्यों सजा मुझको दे जाती है
By nehasharma




1 comment:

  1. this is a poem which indicates a natural beauty of a girl who is in love <3 <3

    ReplyDelete