Monday 1 October 2012

खामोशियाँ


           खामोशियाँ 


क्यों ये खामोशी का आलम इतना खलता है 
क्यों तन्हाई से दिल इतना जलता है 
कोई मेरे दिल को भी तो समझाए 
क्यों ये अकेलेपन से डरता है 
जैसे रात की चादर लपेटे कोई डर सता रहा है 
क्यों ये दिल इतना घबराता है 
कहीं हलचल सी हो तो काप उठता है मन 
क्यों इतने बोझ से बोझिल होता है 
खामोश रातें खामोश दिन है मेरे 
क्यों ये दिल के अंधरे को चीर नहीं पाता  है 
क्यों इस कदर मजबूरियाँ है 
क्यों इस कदर ये दूरियां है 



By Neha Sharma

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