खामोशियाँ
क्यों ये खामोशी का आलम इतना खलता है
क्यों तन्हाई से दिल इतना जलता है
कोई मेरे दिल को भी तो समझाए
क्यों ये अकेलेपन से डरता है
जैसे रात की चादर लपेटे कोई डर सता रहा है
क्यों ये दिल इतना घबराता है
कहीं हलचल सी हो तो काप उठता है मन
क्यों इतने बोझ से बोझिल होता है
खामोश रातें खामोश दिन है मेरे
क्यों ये दिल के अंधरे को चीर नहीं पाता है
क्यों इस कदर मजबूरियाँ है
क्यों इस कदर ये दूरियां है
क्यों इस कदर ये दूरियां है
By Neha Sharma
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